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प्रश्न पत्र 1968
अध्यक्ष महोदय, अभी-अभी
जो प्रस्ताव हम लोगों के सामने इस सदन में रखा गया, वह सचमुच में एक विचारणीय विषय है ।आज हमारे देश की हालत
किसी से छिपी नहीं। हर आदमी जानता है कि देश के कई भागों में वर्षा नहीं हुई। इसके
कारण देश के कई हिस्सों में, जिनमें
कि बिहार प्रमुख है,
अकाल जैसी स्थिति पैदा हो गई है। चाहे हम इस
बाद से कितना भी इन्कार क्यों न करें कि अभी तक भूख से किसी आदमी की मृत्यु
नहीं हुई है, लेकिन यह बिल्कुल ठीक है कि अब ऐसी स्थिति
हाने में कोई असर नहीं रह गई है। आप यह समझ लीजिये कि किसी दिन भी आपको ऐसा अवसर
मिल सकता है कि अमुक स्थान में भूख से इतने आदमियों की मृत्यु हो गई और इतने पशु
समाप्त हो गये।
मैंने स्वयं इन इलाकों
का दौरा किया है करीब-करीब हर गांव और कस्बे को देखा है। मैं
जहां भी गया हूं,
वहीं एक जैसी दु:ख भरी कहानी सुनने को मिली। हर ग्रामवासी के मुंह पर एक
ही शिकायत है कि इस साल हमारा क्या होगा, उनके पास अनाज का भंडार समाप्त हो गया है। पशुओं के
चारे की व्यवस्था नहीं है और सरकार द्वारा कोई उचित प्रबन्ध अभी तक नहीं हुआ।
बेशक सस्ते गल्ले की बहुत सारी दुकानें अभी बहुत कम संख्या में हैं और गांवों
से बहुत दूर-दूर भी हैं। इन दुकानों की दूरी और भी इसलिए अखरती है क्योंकि आज कल
पानी न होने से ग्रामवासी किसी और मेहनत मजदूरी की तलाश में लगे रहते हैं। ऐसे समय
यदि उन्हें अनाज प्राप्त करने के लिए अपने गांव से मीलों दूर जाना पड़े और उनके
आने-जाने में ही पूरा दिन समाप्त हो जाए तोफिर आप ही बताइये वे बेचारे क्याकरे ? इसलिये जहां हम एक ओर यह ध्यान दे रहे हैं कि सस्ते
अनाज की दुकानें खोली जावें, वहां दूसरी ओर यह भी आवश्यक है
कि इन दुकानों की दूरी एक-दो मील से अधिक न हो, भले ही
इसके लिए हमें कुछ अधिक दुकानें खोलनी पड़े।
यह एक बहुत ही आवश्यक बात है और हमें इसका ध्यान रखना चाहिए। ऐसा करने से हो
सकता है कि कुछ अधिक खर्च भी हो, लेकिन ऐसा न करने से काम न
चलेगा।
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