80 wpm dictation प्रश्न पत्र 1972
80 wpm Hindi Dictation OP Sukla Deepak Prakasan 1972
उपाध्यक्ष
महोदय, इस बिल को इस सदन में लाने की आवश्यकता
इसलिए पड़ी कि इस समय में जा पहले के राज्यपाल हैंवे अपने सिद्धान्त और आदर्श
में गिरते चले जा रहे हैं जिससे देश के जन-जीवन पर बुरा असर पड़ रहा है। जो आदमी
संविधान के रक्षक के रूप में काम कर चुका हो, राज्यपाल रह चुका हो और वही आदमी राज्यपाल न रहने पर
ऐसा कार्य करे जो जनता के विरूद्ध जाता हो, तो इससे यह मालूम होता है कि वह उसका जो आदर्श है उससे
गिर रहा है। उनके सामने हमेशा यह आदर्श रहना चाहिए कि अधिक लोगों का हित हो और हम
लोक-राज्य की स्थापना कर सकें जैसा कि हमने अपने संविधान में कहा है। लेकिन
देखने में यह आता हे कि वे ऐसा नहीं कर रहे हैं।
एक बात इस सिलसिले में मैं आपके सामने
रखनाचाहता हूं जब यह कानून बना था उसमें यह बात शामिल थी कि जो लोग दबे हुए हैं, जिन-जिन लोगों का शोषण होता है उनको कुछ सुविधा मिले, उन्हें कुछ राहत मिले और इस प्रकार से उनका जीवन - स्तर
ऊंचा हो। यह बात सबको मालूम है कि भारत के जो अखबार हैं उनके जो मालिक है वे प्राय:
वही लोग हैं जो धनी वर्ग से ताल्लुक रखते हैं तथा उनसे अपने हितों की रक्षा का कार्य
भी करवाते हैं। इस कानून के बनने से उनको ऐसा लगा कि हमारे जो हित हैं उनको धक्का
लगेगा और कर्मचारी को कुछ ज्यादा देना पड़ेगा । उन्होंने इस कानून को, जिसे इस सदन ने पास किया था, चुनौती दी और वे कोर्ट में गये औरवहां पर भी हम यह देखते
है कि उस मुकदमे की पैरवी करने के लिये एक आदमी जो कि राज्यपाल के इस पद पर कार्य
कर चुके है, जाते हैं।
राज्यपाल के पद पर रहने पर तो हम जन-कल्याण
की भावना कासमर्थन करें लेकिन उस पद को छोड़ने के तुरन्त बाद ही हम उसे विरुद्ध कार्य
करें तो इससे यह सिद्ध होता है कि हमारे जो राज्यपाल हैं वे राज्यपाल की इज्जत को
धक्का लगा रहे हैं क्योंकि राज्यपाल ऐसे आदमी नियुक्त किया जाते हैं जिनका बड़ा
सम्मान होता है और जो काफी पढ़े-लिखे होते हैं और देश के नेता होते हैं।
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