140 wpm hindi dictation।। 140 शब्‍द प्रति मिनट

 140 शब्‍द प्रति मिनट   steno dictation

हिन्‍दुस्‍तान की भाषाएं अभी गरीब हैं। उनमें शब्‍द काफी नहीं हैं। इसलिये मौजूदा दुनिया में जो तरक्‍की हुई हैविद्या कीविज्ञान की और दूसरी बातों कीउनको अगर हासिल करना है तब एक धनी का सहारा लेना ही पड़ेगा। अंग्रेजी एक धनी भाषा भी है और साथ-साथ अन्‍तर्राष्‍ट्रीय भाषा भी। चाहे दुर्भाग्‍य से क्‍यों नहींवह अंग्रेजी हमको मिल गई तो अब हम उस अंग्रेजी को क्‍यों छोडें? ये विचार हमेशा अंग्रेजी वालों की तरफ से सुनने को मिलते हैं।

            मैं पहले इसको मानकर चलता हूं कि तेलगूउर्दूहिंदी ये गरीब भाषाएं हैं। इनमें शब्‍द काफी नहीं है इनमें हमारे कानूनविज्ञान वर्गर का काम ठीक से चल नहीं सकता। तब उससे यह नतीजा निकलता है कि हम और किसी धनी भाषा का इस्‍तेमाल करें। उसके बड़े ही खतरनाक परिणाम होंगे और हमारी भाषाएं तो गरीब ही (1) बनी रहेंगी।

            जो लोग कहते हैं कि तेलगूहिंदीउर्दूमराठी गरीब भाषाएं हैं और आधुनिक दुनिया के लायक नहीं हैंउनको तो और इन भाषाओं के इस्‍तेमाल की बात सोचनी चाहिएक्‍योंकि इस्‍तेमाल करते ये भाषाएं धनी बनेंगी। जब मैं कभी इस तर्क को सुनता हूं कि हिन्‍दुस्‍तान में तो बहुत आश्‍चर्य होता है कि अंग्रेजी का इस्‍तेमाल करोक्‍योंकि तुम्‍हारी भाषाएं गरीब है । अगर अंग्रेजी का इस्‍तेमाल करते रह जाओगे तो तुम्‍हारी अपनी भाषाएं कभी धनी नहीं बन पाएंगी।

            अदालत मेंकॉलेज मेंअखबारों में और सरकारी कामकाज में जहां एक सुसंस्‍कृत भाषा की जरूरत पड़ती है या विकसित भाषा की जरूरत पड़ती हैवहां अंग्रेजी का इस्‍तेमाल कर लें और जब अपनी भाषाएं विकसित हो जाएंगी तब उनका इस्‍तेमाल करना। दुनिया में न  तो (2) कभी ऐसा हुआ और न कभी ऐसा होगा। सिर्फ जाहिल लोग ही इस तर्क को दे सकते हैं और इस काम को कर सकते हैं।

            भाषाओं की तरक्‍की पहले होती है। अदालतों में भाषा इस्‍तेमाल होती हैशब्‍द घिसते हैं। वकील और वादी-प्रतिवादी या जब आपस में जिरह करते हैं। भाषाएं साथ-साथ मंजी चली जाती है। इस तरफ कानून मंजता हैजिरह होती हैदूसरी तरफ भाषा के ये शब्‍द जिनमें जिरह होती है ये शब्‍द भी मंजते चले जाते हैं। बड़ी इंजीनियरी या दवाई का शास्‍त्र अब तो तकरीबन निश्चित है कि दुनिया में सबसे अच्‍छा जर्मनी में रहा है और गणितजो शुद्ध गणित हैवह अब भी है। रूसी शुद्ध गणित में करीब-करीब बराबरी पर आ रहे हैं। अभी तक जर्मनी सबसे आगे है।

            यह बात बिल्‍कुल झुठी है कि हिन्‍दुस्‍तान की (3) भाषाओं में शब्‍द कम हैं। अंग्रेजी भाषा के शब्‍द तो दो लाख होंगे और हिन्‍दुस्‍तान की जो भाषाएं हैं तेलगु होबंगाली होमराठी होहिंदी होउर्देू हो इन सभी मेंकही इन सबको ऐसा न बना दीजिए कि उर्दू भी अरबी -फारसी हो जाए या हिंदी को मत बना दीजिए कि वह बिल्‍कुल संस्‍कृत हो जाएजिसे हिंदी-उर्दू कहना चाहिएहिन्‍दूस्‍तानी जिसे आम तौर से कहा भी करते हैं मैं समझता हूं, 50 हजार या लाख का फर्क इधन याउधर होकरीब छह लाख के आसपास शब्‍द हैं। यह बात कभी नहीं कही जाती है। मैं तो दिन-रात इस बात को चिल्‍ला-चिल्‍ला कर कहता हूं कि इस बात का कोई जवाब दोलेकिन असलियतआपके सामने नहीं पहुचेगी। अगर शब्‍दों की तादाद में देखा जायेतो अपनी भाषाए धनी है। पर हमें सच्‍ची बात (4)देखनी हैबहस ही नहीं करनी है।

            सच बात तो यह है कि अपने शब्‍द तो ज्‍यादा हैंलेकिन वे मंजे हुए नहीं हैं। ऐसे बहुत से बर्तन हैं जो या तो कभी बहुत इस्‍तेमाल हुए थे और या कई बरसों रखे-रखे उनको जंग लग गई। उसी तरह से शब्‍द भी कहीं तो मज गये और कुछ ऐसे हैं जो नये हैं। वे उतने मंजे हुए नहीं है,क्‍योंकि पिछले तीन सौ बरसों मे लगातार उनका इस्‍तेमाल हुआ ही नहीं । खास तौर से ये पिछले 300 बरस में ये आधुनिकता के विज्ञान के निरंतर तरक्‍की करने वाली इंजीनियरी के या खेती कारखानों में नये तरीके के उपयोग करते हैं। इन 300 बरस में हम राजनीति में भी पिछड़े हुए रहे । ये  चीजें दोनों साथ-साथ चलती हैं। इसलिए हालांक हमारे शब्‍दों की संख्‍या 6 लाख के आसपास है।(5)