Develpoment of steno l Shorthand ki suruvat

Develpoment of steno l आशुलिपि का विकास


Develpoment of steno l  Shorthand ki suruvat


Steno/Shorthand का गौरवशाली इतिहास रहा है। प्राचीन रोमन साम्राज्‍य में Steno/Shorthand का ज्ञान अत्‍यंत महत्‍व का विषय था। इसका उपयोग विभिन्‍न प्रयोजनों के लिए किया जाता था। रोमन सम्राट जूलियस रोजर ने लेखन के लिए Steno/Shorthandका प्रयोग किया। अमेरिकी राष्‍ट्रपति मार्टिन लूथर किंग व पादरी गण चर्च में प्रवचनों को Steno/Shorthandमें लि‍खते थे। शेक्‍सपियर के नाटकों को Steno/Shorthandमें लिखकर सुरक्षित रखा गया है।

 Steno/Shorthand के विकास का प्रयास यूरोपिय देशों में सर्वाधिक हुआ। उस समय औद्योगिक क्रांति का युग था, इंग्‍लैण्‍ड सहित यूरोपिय देश काफी आगे थे। औद्यौगिक प्रगति के साथ ही साहित्‍य व कला की भी उन्‍नति हुई। साहित्‍यकार, लेखक व ध्‍वनिशास्‍त्री निरंतर चिंतनशील रहे। महान साहित्‍यकार ''जार्ज बर्नाड शॉ'' कर्सिव शार्टहैंड के जन्‍मदाता थे उन्‍होंने साहित्‍यकारों, पत्रकारों, व्‍यावसायिक लेखकों को इसके लिए प्रोत्‍साहित किया। इंग्‍लैण्‍ड के प्रसिदध उपन्‍यासकार चार्ल्‍स डिकेन्‍स पहले समाचार पत्र में रिपोर्टर थे उन्‍होंने अपने कार्य में शार्टहैण्‍ड का उपयोग किया।

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भारतीय परंपरा में आशुलिपि का विकास 1900, में प्रारंभ हुआ। हमारे देश में हिन्‍दी आशुलिपि का इतिहास स्‍वाधीनता संग्राम के गौरवपूर्ण इतिहास से जुड़ है। हिन्‍दी सेवा संस्‍थान व राष्‍ट्रीय नेताओं के प्रयास से 1907 में हिन्‍दी आशुलिपि आरंभ हुआ। 1937 में रार्ष्‍टभाषा प्रचार समिति सभा ने पहली पुस्‍तक ''निष्‍काम प्रणाली'' प्रकाशित हुई जो 40 साल के अंतराल में ही विलुप्‍त हो गयी। ऋषिलाल अग्रवाल सहित अनेक विद्वानोंं ने अपना जीवन आशुलिपि को समर्पित कर दिया। इसी समय जोधपुर के गजसिं‍ह ने गजानन प्रणाली जी.एम. गोखले ने शर्मा प्रणाली, एस.पी. सिंह ने सिंह प्रणाली, महेश्‍वरचंद्र गुप्‍त ने ''गुप्‍त प्रणाली'' विष्‍णुदत्‍त उन्न्यिाल ने उन्न्यिाल प्रणाली, सागर के शरतचंद्र डागर ने रीता प्रणाली बनाई, ये सब इंग्‍लैण्‍ड के सर आईजक पिटमेन की प्रणाली से प्रभावित थे।

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Hindi Shorthandमें दूसरी पद्ति के रूप में स्‍लोअन व डुप्‍लोयन आई। इस पर आधारित कई लोगों ने जैसे एल.पी. जैन ने जैन प्रणाली एस.पी.निगम , सिद्धेश्‍वर नाथ, नारायण दास खन्‍ना ने विभन्‍न प्रणालियों की रचना की पर सभी खामियों के कारण विलुप्‍त हो गई। तीसरी ग्रेग प्रणाली आई जो कि अंग्रेजी का ही अनुकरण था यह भी अधिक समय तक नहीं टिक सका। इलाहाबाद के ऋषिलाल अग्रवाल द्वारा अविष्‍कृत ऋषि प्रणाली सभी Steno प्रणालियों में न्‍यून खामियों वाली रही जो आज भी देश में प्रचलित है। सरयूप्रसाद की सिंह प्रणाली को पुलिस इंस्‍पेक्‍टरों व केन्‍द्रीय अन्‍वेषण विभाग के इंस्‍पेक्‍टरों की Reporting के लिए उपयोग की जाती थी। केन्‍द्र सरकार के Stenographer  को प्रशासकीय कार्य में गति लाने हेतु हिन्‍दी आशुलिपि प्रशिक्षण hindi ashulipi tranings  अनिवार्य कर दिया गया। इस हेतु अपनाई गई आशुलिपि को मानक प्रणाली manak system कहा गया।

देश स्‍वतंत्र होने के बाद लोकसभा, राज्‍यसभा, विधानमंडलों व विधायिका सभाओं की कार्यवाही को शब्‍दश: Reporting के लिए कुशल व गतिशील शीघ्रलेखकों की आवश्‍यकता महसूस हुई तब डॉ. गोपालदत्‍त बिष्‍ट Dr. gopal datt bist द्वारा पिटमैन pitmap पर आधारित हिन्‍दी अंग्रेजी दोनों में विष्‍ट प्रणाली bist pranali बनाई गई । वे स्‍वयं हिन्‍दी आशुलिपि hindi shorthand में २५० शब्‍द प्रति मनट 250wpm की गति के विश्‍व रिकार्डधारी रहे हैं। यह प्रणाली नवीनतम होने के साथ ही वैज्ञानिकता व भाषा ज्ञान पर आधारित होने के कारण आज सर्वथा प्रचलन में है।