Steno Pranali Hindi हिन्दी स्टेनो की समस्त प्रणालियां
हिन्दी स्टेनो की समस्त प्रणालियां
हिंदी स्टेनो में स्टेनो का प्रयोग करने की एवं स्टेनो डिक्टेशन लिखने
के लिए कुछ प्रणाली है इन प्रणाली से स्टेनों के चिंह को आसान तरीके से लिखा जाता
है हालांकि हिंदी के प्रणाली को अलग अलग प्रकार से लिखा जाता है इसमें छोटे शबद चिन्ह, संक्षिप्ताक्षर, कुट शब्द अन्य कई विधियों
का अपना प्रयोग होता है।
हिंदी स्टेनो की प्रणाली का इतिहास एवं
कौन कौन सी प्रणाली है जो कि हिंदी के लिए विकसित की गई है। इस पोस्ट में बताई गई
है।
हिन्दी सेवा संस्थान व राष्ट्रीय
नेताओं के प्रयास से 1907 में हिन्दी आशुलिपि आरंभ हुआ। 1937 में रार्ष्टभाषा प्रचार समिति सभा ने
पहली पुस्तक ''निष्काम प्रणाली''
प्रकाशित हुई जो 40 साल के अंतराल में ही विलुप्त हो गयी।
ऋषिलाल अग्रवाल सहित अनेक विद्वानोंं ने अपना जीवन आशुलिपि
को समर्पित कर दिया। इसी समय जोधपुर के गजसिंह ने गजानन प्रणाली जी.एम.गोखले ने शर्मा प्रणाली, एस.पी. सिंह ने सिंह प्रणाली, महेश्वरचंद्र गुप्त ने ''गुप्त प्रणाली'' विष्णुदत्त उन्न्यिाल
ने उन्न्यिाल प्रणाली, सागर के शरतचंद्र डागर ने
रीता प्रणाली बनाई,
ये सब इंग्लैण्ड के सर आईजक पिटमेन की
प्रणाली से प्रभावित थे।
हिन्दी आशुलिपि में दूसरी पद्ति के रूप में स्लोअन व डुप्लोयन आई। इस पर आधारित कई लोगों ने जैसे एल.पी. जैन ने जैन प्रणाली एस.पी.निगम , सिद्धेश्वर नाथ, नारायण दास खन्ना ने विभन्न प्रणालियों की रचना की पर सभी खामियों के कारण विलुप्त हो गई । तीसरी ग्रेग प्रणाली आई जो कि अंग्रेजी का ही अनुकरण था यह भी अधिक समय तक नहीं टिक सका। इलाहाबाद के ऋषिलाल अग्रवाल द्वारा अविष्कृत ऋषि प्रणाली सभी आशुलिपि प्रणालियों में न्यून खामियों वाली रही जो आज भी देश में प्रचलित है। सरयूप्रसाद की सिंह प्रणाली को पुलिस इंस्पेक्टरों व केन्द्रीय अन्वेषण विभाग के इंस्पेक्टरों की रिपोर्टिंग के लिए उपयोग की जाती थी। केन्द्र सरकार के आशुलिपिकों को प्रशासकीय कार्य में गति लाने हेतु हिन्दी आशुलिपि प्रशिक्षण अनिवार्य कर दिया गया। इस हेतु अपनाई गई आशुलिपि को मानक प्रणाली कहा गया।
देश स्वतंत्र होने के बाद लोकसभा, राज्यसभा, विधानमंडलों व विधायिका सभाओं की
कार्यवाही को शब्दश: रिपोर्टिंग के लिए कुशल व गतिशील शीघ्रलेखकों की आवश्यकता
महसूस हुई तब डॉ. गोपालदत्त बिष्ट
द्वारा पिटमैन पर आधारित हिन्दी अंग्रेजी दोनों में विष्ट प्रणाली बनाई गई ।वे स्वयं हिन्दी आशुलिपि में २५० शब्द प्रतिमनट की गति
के विश्व रिकार्डधारी रहे हैं। यह प्रणाली नवीनतम होने के साथ ही वैज्ञानिकता व
भाषा ज्ञान पर आधारित होने के कारण आज सर्वथा प्रचलन में है।
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